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महाकाव्य और खण्डकाव्य में क्या अन्तर है? | महाकाव्य और खण्डकाव्य क्या होते हैं?

(445)     2026

महाकाव्य का आकार विशाल होता है, जबकि खण्डकाव्य का आकार सीमित होता है।

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वीर रस और करूण रस में अन्तर | वीर और करूण रस की परिभाषा और उदाहरण

(442)     3485

वीर रस का स्थायी भाव उत्साह है, जबकि करुण रस का स्थायी भाव शोक है।

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हिन्दी गद्य विधा 'रेखाचित्र' क्या होते हैं? | संस्मरण और रेखाचित्र में अन्तर

(439)     2296

रेखाचित्र, गद्य के नए रूप की प्रमुख विधा है। कलात्मकता इसकी पहली शर्त है।

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लघुकथा किसे कहते हैं? | प्रमुख लघुकथाकार एवं उनकी रचनाएँ

(437)     3733

आज से कुछ दशक पूर्व तक लघुकथा विधा स्थापित नहीं थी, पर अब यह विधा न उपेक्षित है और न ही अनजानी।

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आदिकाल की विशेषताएँ | प्रमुख कवि एवं उनकी रचनाएँ

(435)     32310

आदिकाल को वीरगाथाकाल के नाम से भी जाना जाता है।

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भक्तिकाल | सगुण धारा की रामभक्ति और कृष्णभक्ति शाखा || निर्गुण धारा की ज्ञानाश्रयी और प्रेमाश्रयी शाखा

(434)     4438

भक्तिकाल हिन्दी साहित्य का स्वर्णिम काल माना जाता है।

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रीतिकाल की विशेषताएँ और धाराएँ | प्रमुख कवि एवं उनकी रचनाएँ

(433)     10513

इस लेख में रीतिकाल के बारे में जानकारी दी गई है।

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अर्थ के आधार पर वाक्य के प्रकार

(430)     4754

ऐसा सार्थक शब्द समूह जो व्यवस्थित हो तथा पूरा आशय प्रकट करता हो, वाक्य कहलाता है।

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कहानी क्या होती है? | प्रमुख कहानीकार एवं उनकी कहानियाँ || उपन्यास और कहानी में अन्तर

(429)     9447

कहानी वह कथात्मक लघु गद्य रचना है जिसमें जीवन की किसी एक स्थिति का सरस सजीव चित्रण होता है।

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संस्मरण क्या है? | प्रमुख संस्मरण लेखक एवं उनकी रचनाएँ

(424)     4197

'संस्मरण' का शाब्दिक अर्थ है– 'सम्यक् स्मरण'।

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आत्मकथा क्या होती है? | प्रमुख आत्मकथा लेखक एवं उनकी रचनाएँ

(423)     3260

आत्मकथा हिन्दी साहित्य की वह गद्य विधा है, जिसमें लेखक अपनी स्वयं की कथा लिखता है।

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निबन्ध क्या है? | निबन्ध का इतिहास || प्रमुख निबन्धकार एवं उनकी रचनाएँ

(422)     1752

यदि गद्य कवियों या लेखकों की कसौटी है, तो निबन्ध गद्य की कसौटी है।

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पत्र-साहित्य क्या है? | प्रमुख पत्र-साहित्य एवं उनके लेखक

(404)     4895

कलात्मक पत्र एक साहित्यिक विधा है।

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प्रभुरुख पाइ कै, बोलाइ बालक घरनिहि – गोस्वामी तुलसीदास

(390)     1451

प्रस्तुत पद 'केवट प्रसंग' से लिया गया है।

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रावरे दोषु न पायन को – गोस्वामी तुलसीदास

(387)     2517

प्रस्तुत पद 'केवट प्रसंग' से लिया गया है।

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एहि घाटतें थोरिक दूरि अहै– गोस्वामी तुलसीदास

(385)     2075

प्रस्तुत पद्यांश 'केवट प्रसंग' नामक शीर्षक से लिया गया है।

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नाम अजामिल-से खल कोटि – गोस्वामी तुलसीदास

(382)     2277

प्रस्तुत पद 'केवट प्रसंग' नामक शीर्षक से लिया गया है।

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यह तन काँचा कुम्भ है – कबीर दास

(376)     1846

प्रस्तुत दोहा 'अमृतवाणी' नामक शीर्षक से लिया गया है।

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यह संसार क्षणभंगुर है – जैनेन्द्र कुमार

(372)     1829

प्रस्तुत गद्यांश 'खेल' नामक कहानी से लिया गया है।

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माटी कहै कुम्हार से – कबीर दास

(370)     1516

प्रस्तुत पद्यांश 'अमृतवाणी' नामक शीर्षक से लिया गया है।

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कबीर दास का जीवन परिचय एवं काव्यगत विशेषताएँ

(239)     4033

कबीर दास की एकमात्र प्रमाणिक रचना 'बीजक' है।

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उपन्यास क्या है? | उपन्यास का इतिहास एवं प्रमुख उपन्यासकार

(237)     6408

प्रेमचन्द को उपन्यास-सम्राट कहा जाता है।

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सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन 'अज्ञेय' का जीवन परिचय

(235)     2446

अज्ञेय जी की सबसे बड़ी उपलब्धि सन् 1943 में संपादित 'तार सप्तक' है।

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एकांकी क्या है? | एकांकी का इतिहास एवं प्रमुख एकांकीकार

(233)     8928

जयशंकर प्रसाद ने हिन्दी साहित्य की प्रथम एकांकी 'एक घूँट' की रचना की थी।

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जयशंकर प्रसाद का जीवन परिचय एवं काव्यगत विशेषताएँ

(231)     5111

जयशंकर प्रसाद का महाकाव्य 'कामायनी' हिंदी साहित्य की अमूल्य निधि है।

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सूरदास का जीवन परिचय एवं काव्यगत विशेषताएँ

(228)     4737

सूरदास भगवान श्री कृष्ण की आराधना करते थे।

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नाटक क्या है? | नाटक का इतिहास एवं प्रमुख नाटककार

(225)     6568

जब किसी कथा का रंगमंच पर अभिनेताओं द्वारा प्रदर्शन (अभिनय) किया जाता है, तो उसे नाटक कहते हैं।

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गोस्वामी तुलसीदास– जीवन परिचय एवं काव्यगत विशेषताएँ

(222)     2429

तुलसीदास का कहना था कि "श्री राम स्वामी है और तुलसी सेवक है।"

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नई कविता– विशेषताएँ एवं प्रमुख कवि

(215)     106948

प्रयोगवादी कविताओं ने आगे चलकर नई कविताओं का रूप ले लिया।

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प्रयोगवाद– विशेषताएँ एवं महत्वपूर्ण कवि

(211)     33652

प्रयोगवादी कवि नवीन राहों के अन्वेषी हैं।

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प्रगतिवाद– विशेषताएँ एवं प्रमुख कवि

(209)     71032

राजनीति के क्षेत्र में जो साम्यवाद है, साहित्य के क्षेत्र में वही प्रगतिवाद है।

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रहस्यवाद (विशेषताएँ) तथा छायावाद व रहस्यवाद में अंतर

(206)     13385

चिंतन के क्षेत्र में जो अद्वैतवाद है, भावना के क्षेत्र में वही रहस्यवाद है।

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छायावाद– विशेषताएँ एवं प्रमुख कवि

(205)     116540

"स्थूल के प्रति सूक्ष्म के विद्रोह" को छायावाद कहा जा सकता है।

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मैथिलीशरण गुप्त– कवि परिचय

(199)     2281

मैथिलीशरण गुप्त को 'राष्ट्र कवि' की उपाधि प्रदान की गई थी।

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हिन्दी का इतिहास– द्विवेदी युग (विशेषताएँ एवं कवि)

(188)     7496

द्विवेदी युग के प्रवर्तक आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी हैं। उन्होंने 'सरस्वती' पत्रिका का संपादन किया था।

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हिंदी का इतिहास– भारतेन्दु युग (विशेषताएँ एवं प्रमुख कवि)

(185)     24684

भारतेंदु युग को आधुनिक हिंदी साहित्य के इतिहास का प्रथम युग माना जाता है।

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भज मन चरण कँवल अविनासी– मीराबाई

(175)     2217

"मीरा के पद" भज मन चरण कँवल अविनासी। जेताई दीसे धरण गगन बिच, तेताइ सब उठि जासी।

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छावते कुटीर कहूँ रम्य जमुना कै तीर– जगन्नाथ दास 'रत्नाकर'

(174)     2253

"उद्धव-प्रसंग" छावते कुटीर कहूँ रम्य जमुना कै तीर गौन रौन-रेती सों कदापि करते नहीं।

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शब्द सम्हारे बोलिये– कबीरदास

(168)     8557

"अमृतवाणी" शब्द सम्हारे बोलिये, शब्द के हाथ न पाँव।

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देखो मालिन, मुझे न तोड़ो– शिवमंगल सिंह 'सुमन'

(167)     2031

हम तुम बहुत पुराने साथी जगती के मधुबन में

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जो जल बाढ़ै नाव में– कबीरदास

(163)     4554

"अमृतवाणी" जो जल बाढ़ै नाव में, घर में बाढ़ै दाम।

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जो पूर्व में हमको अशिक्षित या असभ्य बता रहे– मैथिलीशरण गुप्त

(162)     2057

"महत्ता" जो पूर्व में हमको अशिक्षित या असभ्य बता रहे– वे लोग या तो अज्ञ हैं या पक्षपात जता रहे।

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आए हौ सिखावन कौं जोग मथुरा तैं तोपै– जगन्नाथ दास 'रत्नाकर'

(161)     5999

"उद्धव-प्रसंग" आए हौ सिखावन कौं जोग मथुरा तैं तोपै ऊधौ ये बियोग के बचन बतरावौ ना।

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कबीर कुसंग न कीजिये– कबीरदास

(155)     2142

"अमृतवाणी" कबीर कुसंग न कीजिये, पाथर जल न तिराय।

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हिंदी पद्य साहित्य का इतिहास– आधुनिक काल

(151)     4980

माना जाता है कि आधुनिक हिंदी कविता का आरंभ संवत् 1900 से हुआ था। इस अवधि के दौरान हिंदी कविता एवं साहित्य का चहुँमुखी विकास हुआ।

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सुनि सुनि ऊधव की अकह कहानी कान– जगन्नाथ दास 'रत्नाकर'

(150)     3324

"उद्धव-प्रसंग" सुनि सुनि ऊधव की अकह कहानी कान कोऊ थहरानी कोऊ थानहि थिरानी हैं।

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कबीर संगति साधु की– कबीर दास

(146)     1913

"अमृतवाणी" कबीर संगति साधु की, जो करि जाने कोय।

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भेजे मनभावन के उद्धव के आवन की– जगन्नाथ दास 'रत्नाकर'

(144)     10089

"उद्धव-प्रसंग" भेजे मनभावन के उद्धव के आवन की सुधि ब्रज-गाँवनि में पावन जबैं लगीं।

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सखी री लाज बैरन भई– मीराबाई

(142)     1587

"मीरा के पद" सखी री लाज बैरन भई।
श्री लाल गोपाल के संग, काहे नाहिं गई।

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मीराबाई– कवि परिचय

(139)     1603

मीराबाई ने अपना संपूर्ण जीवन गिरधर गोपाल को समर्पित कर दिया था। उनकी रचनाएँ हिंदी साहित्य की अमूल्य निधि हैं।

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आचार्य केशवदास– कवि परिचय

(135)     2911

केशव को 'आचार्य' कहकर संबोधित किया जाता है। उनको हिंदी जगत के 'कठिन काव्य के प्रेत' के नाम से जाना जाता है।

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बाल्हा मैं बैरागिण हूँगी हो– मीराबाई

(133)     1212

"मीरा के पद" बाल्हा मैं बैरागिण हूँगी हो। जो-जो भेष म्हाँरो साहिब रीझै, सोइ सोइ भेष धरूँगी, हो।

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मो देखत जसुमति तेरे ढोटा, अबहिं माटी खाई― सूरदास

(131)     2008

"सूर के बालकृष्ण" मो देखत जसुमति तेरे ढोटा, अबहिं माटी खाई। यह सुनिकै रिस करि उठि धाई, बांह पकरि लै आई।

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मैया, मोहिं दाऊ बहुत खिझायो― सूरदास

(130)     6431

"सूर के बालकृष्ण" मैया, मोहिं दाऊ बहुत खिझायो। मोसों कहत मोल को लीनो, तोहि जसुमति कब जायो।

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बानी जगरानी की उदारता बखानी जाइ― केशवदास

(128)     4736

"सरस्वती-वंदना" बानी जगरानी की उदारता बखानी जाइ, ऐसी मति उदित उदार कौन की भई।

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मैया कबहिं बढ़ैगी चोटी― सूरदास

(123)     4338

"सूर के बालकृष्ण" मैया कबहिं बढ़ैगी चोटी। किती बार मोहि दूध पिअत भई, यह अजहूँ है छोटी।

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मैया मैं नाहीं दधि खायो― सूरदास

(121)     2057

"सूर के बालकृष्ण" मैया मैं नाहीं दधि खायो। ख्याल परे ये सखा सबै मिलि, मेरे मुख लपटायो। देखि तुही सींके पर भाजन, ऊँचे धर लटकायो। तुही निरखि नान्हे कर अपने, मैं कैसे करि पायो।

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बीती विभावरी जाग री― जयशंकर प्रसाद

(119)     43218

"गीत" बीती विभावरी जाग री। अम्बर-पनघट में डुबो रही- तारा-घट ऊषा-नागरी।

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