जब किसी भाषा को समस्त राष्ट्र की भाषा मान लिया जाता है, तब वह राष्ट्रभाषा कहलाती है। राष्ट्रभाषा भाषा का वह व्यापक रूप है जिसका व्यवहार समस्त राष्ट्र में होता है। राष्ट्रभाषा वस्तुतः देश की संस्कृति एवं देश के आदर्शों तथा देशवासियों की आकांक्षाओं की अभिव्यक्ति करती है। वही भाषा राष्ट्रभाषा बन सकती है, जिसमें सामर्थ्य हो कि वह देश के विभिन्न भागों के निवासियों के मध्य सम्पर्क स्थापित कर सके तथा अन्य भाषाओं एवं विभाषाओं की प्रगति में सहायक बन सके।
हिन्दी भाषा बोलने और समझने वाले हिन्दी प्रदेशों में ही नहीं, वरन् पूरे भारत में मिलते हैं। इसमें पर्याप्त साहित्य उपलब्ध है। इसे देश की लगभग 60 प्रतिशत जनता द्वारा बोला, समझा और लिखा जाता है।
हिन्दी; अहिन्दी भाषी राज्यों की सम्पर्क भाषा भी है। यह बहुत तेजी से अन्तर्राष्ट्रीय मंच पर प्रतिष्ठित होती जा रही है। भारत के अतिरिक्त विदेशों के लगभग नब्बे विश्वविद्यालयों में हिन्दी का अध्ययन अध्यापन हो रहा है। विश्व में सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषा चीनी, अंग्रेजी के बाद हिन्दी का स्थान है। इसे संयुक्त राष्ट्र संघ की मान्य भाषाओं में सम्मिलित करने के प्रयत्न हो रहे हैं। विश्व में विविध स्थानों पर विश्व हिन्दी सम्मेलनों का आयोजन इसकी प्रतिष्ठा को और बढ़ा रहा है। प्रवासी भारतीयों द्वारा भी साहित्य सृजन कर हिन्दी को समृद्ध बनाया जा रहा है।
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