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छंद में मात्राओं की गणना कैसे करते हैं? | Chhand me Matrao ki gadna kaise karte hain?

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मात्राएँ कैसे गिनते हैं?

मात्रा –
किसी स्वर के उच्चारण में जो समय लगता है उसकी अवधि को मात्रा कहते हैं।
मात्राएँ – हस्व और दीर्घ होती हैं।
हस्व मात्रा –
'अ', 'इ', 'उ', 'ऋ' हस्व स्वर की हैं। इसे लघु भी कहते है। इसकी एक मात्रा गिनी जाती है। इसका चिह्न '।' ( एक खड़ी डण्डी) है।
दीर्घ मात्रा –
'आ', 'ई', 'ऊ', 'ए', 'ऐ', 'ओ', 'औ' की दीर्घ मात्रा होती है। इसे गुरू भी कहते हैं। इसकी दो मात्राएँ गिनी जाती हैं। इसका संकेत चिह्न 's' (अंग्रेजी के अक्षर 'एस' के समान) है।

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4. रस के चार अवयव (अंग) – स्थायीभाव, संचारी भाव, विभाव और अनुभाव

उदाहरण–
13 मात्राएँ ................... 11 मात्राएँ
s । .। । । .s । । । . s - s । । .। s . ।. s ।
दीन सवन को लखत हैं, दीनहि लखै न कोय।
s . । s । .s। s. । s - s । s । . । । . s ।
जो रहीम दीनहि लखै, दीनबन्धु सम होय॥
उक्त दोहा छंद है। यह मात्रिक छंद के अन्तर्गत आता है। इस छंद की रचना मात्राओं की गिनती के आधार पर होती है।
उक्त दोहे में प्रत्येक शब्द में मात्राओं की गणना को देखिये –

(i) दीन – इस शब्द में 'द' में 'ई' की मात्रा लगी है और 'ई' दीर्घ वर्ण है इसे गुरु (s) गिना जायेगा। 'न' में 'अ' सम्मिलित है और 'अ' हृस्व स्वर है अतः इसे लघु (।) गिना जायेगा। इस तरह 'दीन' शब्द में गुरु लघु (s ।) मात्रा की गणना की जायेगी।

(ii) सबन – इस शब्द में 'स', 'ब' और 'न' तीनों में 'अ' सम्मिलित है और 'अ' एक हृस्व स्वर है अतः इसे लघु (।) गिना जायेगा और तीनों वर्णों के लिए (। । ।) मात्राएँ गिनी जायेगी। इस तरह 'सबन' शब्द में लघु लघु लघु (। । ।) मात्रा की गणना की जायेगी।

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1. विराम चिन्हों का महत्व
2. पूर्ण विराम का प्रयोग कहाँ होता है || निर्देशक एवं अवतरण चिह्न के उपयोग
3. लोकोक्ति और मुहावरे में अंतर भाषा में इनकी उपयोगिता
4. प्रेरणार्थक / प्रेरणात्मक क्रिया क्या है ? इनका वाक्य में प्रयोग
5. पुनरुक्त शब्द एवं इसके प्रकार | पुनरुक्त और द्विरुक्ति शब्दों में अन्तर

(iii) को – इस शब्द में 'क' में 'ओ' की मात्रा लगी है और 'ओ' एक दीर्घ वर्ण है इसे गुरु (s) गिना जायेगा। इस तरह 'को' शब्द में गुरु (s) मात्रा की गणना की जायेगी।

(iv) लखत – इस शब्द में 'ल', 'ख' और 'त' तीनों में 'अ' सम्मिलित है और 'अ' एक हृस्व स्वर है अतः इसे लघु (।) गिना जायेगा और तीनों वर्णों के लिए (।,।,।) मात्राएँ गिनी जायेगी। इस तरह 'दीनहि' शब्द में लघु लघु लघु (। । ।) मात्रा की गणना की जायेगी।

(v) हैं – इस शब्द में 'ह' में 'ऐ' की मात्रा के साथ अनुनासिक (ँ) लगा है किंतु किसी वर्ण में अनुनासिक (चन्द्र बिन्दु) लगे होने पर भी उसे हृस्व ही गिना जाता है किन्तु 'ह' में 'ऐ' की मात्रा लगी हुई है और 'ऐ' दीर्घ वर्ण है इसलिए इसे गुरु (s) गिना जायेगा। इस तरह 'हैं' शब्द में गुरु (s) मात्रा की गणना की जायेगी।

(vi) दीनहि – इस शब्द में 'द' में 'ई' की मात्रा है इसे गुरु (s) गिना जायेगा, 'न' में 'अ' सम्मिलित है इसे लघु (।) गिना जायेगा। और 'ह' में 'इ' की मात्रा लगी है और 'इ' भी हृस्व स्वर है अतः इसे लघु (।) गिना जायेगा। इस तरह 'दीनहि' शब्द में गुरु लघु लघु (s । ।) मात्रा की गणना की जायेगी।

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1. समास के प्रकार, समास और संधि में अन्तर
2. संधि - स्वर संधि के प्रकार - दीर्घ, गुण, वृद्धि, यण और अयादि
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4. योजक चिह्न- योजक चिह्न का प्रयोग कहाँ-कहाँ, कब और कैसे होता है?
5. वाक्य रचना में पद क्रम संबंधित नियम
6. कर्त्ता क्रिया की अन्विति संबंधी वाक्यगत अशुद्धियाँ

(vii) लखै – इस शब्द में 'ल' में 'अ' सम्मिलित है अतः इसे लघु (।) गिना जायेगा और 'ख' में 'ऐ' की मात्रा लगी है इसलिए 'ऐ' को गुरु (s) गिना जायेगा। इस तरह 'लखै' शब्द में लघु गुरु (। s) मात्रा की गणना की जायेगी।

(viii) न – इस शब्द में 'न' में 'अ' सम्मिलित है और 'अ' को लघु (।) गिना जायेगा। इस तरह 'न' शब्द में लघु (।) मात्रा की गणना की जायेगी।

(ix) कोय – इस शब्द में 'क' में 'ओ' की मात्रा लगी है और 'ओ' को गुरु (s) गिना जायेगा। 'य' में 'अ' सम्मिलित है और 'अ' हृस्व स्वर है अतः इसे लघु (।) गिना जायेगा। इस तरह 'कोय' शब्द में गुरु लघु (s ।) मात्रा की गणना की जायेगी।

(x) जो – इस शब्द में 'ज' में 'ओ' की मात्रा लगी है और 'ओ' को दीर्घ (s) गिना जायेगा। इस तरह 'जो' शब्द में गुरु (s) मात्रा की गणना की जायेगी।

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1. 'ज' का अर्थ, द्विज का अर्थ
2. भिज्ञ और अभिज्ञ में अन्तर
3. किन्तु और परन्तु में अन्तर
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5. सन्सार, सन्मेलन जैसे शब्द शुद्ध नहीं हैं क्यों
6. उपमेय, उपमान, साधारण धर्म, वाचक शब्द क्या है.
7. 'र' के विभिन्न रूप- रकार, ऋकार, रेफ
8. सर्वनाम और उसके प्रकार

(xi) रहीम – इस शब्द में 'र' में 'अ' सम्मिलित है अतः इसे लघु (।) गिना जायेगा, 'ह' में 'ई' की मात्रा लगी है जोकि दीर्घ है इसलिए इसे गुरु (s) गिना जायेगा और 'म' में 'अ' सम्मिलित है इसलिए इसे भी लघु (।) गिना जायेगा। इस तरह 'रहीम' शब्द में लघु गुरु लघु (। s ।) मात्रा की गणना की जायेगी।

(xii) दीनहि – इस शब्द में 'द' में 'ई' की मात्रा लगी है अतः इसे गुरु (s) गिना जायेगा, 'न' में 'अ' सम्मिलित है इसलिए इसे लघु (।) गिना जायेगा और 'ह' में 'इ' की मात्रा लगी है और 'इ' हृस्व स्वर है अतः इसे भी लघु (।) गिना जायेगा। इस तरह 'दीनहि' शब्द में गुरु लघु लघु ( s । ।) मात्रा की गणना की जायेगी।

(xiii) लखै – इस शब्द में 'ल' में 'अ' सम्मिलित है अतः इसे लघु (।) गिना जायेगा और 'ख' में 'ऐ' की मात्रा लगी है और 'ऐ' को गुरु (s) गिना जायेगा। इस तरह 'लखै' शब्द में लघु गुरु (। s) मात्रा की गणना की जायेगी।

हिन्दी व्याकरण के इन 👇 प्रकरणों को भी पढ़िए।।
1. शब्द क्या है- तत्सम एवं तद्भव शब्द
2. देशज, विदेशी एवं संकर शब्द
3. रूढ़, योगरूढ़ एवं यौगिकशब्द
4. लाक्षणिक एवं व्यंग्यार्थक शब्द
5. एकार्थक शब्द किसे कहते हैं ? इनकी सूची
6. अनेकार्थी शब्द क्या होते हैं उनकी सूची
7. अनेक शब्दों के लिए एक शब्द (समग्र शब्द) क्या है उदाहरण
8. पर्यायवाची शब्द सूक्ष्म अन्तर एवं सूची
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10. हिन्दी शब्द- पूर्ण पुनरुक्त शब्द, अपूर्ण पुनरुक्त शब्द, प्रतिध्वन्यात्मक शब्द, भिन्नार्थक शब्द
11. द्विरुक्ति शब्द क्या हैं? द्विरुक्ति शब्दों के प्रकार

(xiv) दीनबन्धु – इस शब्द में 'द' में 'ई' की मात्रा जो कि दीर्घ है अतः इसे गुरु (s) गिना जायेगा, 'न' में 'अ' सम्मिलित है इसे लघु (।) गिना जायेगा, 'ब' में 'अ' सम्मिलित है किन्तु 'ब' के बाद संयुक्त वर्ण है अतः 'ब' दीर्घ हो जायेगा। 'ध' में 'उ' की मात्रा लगी है। और 'उ' की हृस्व (।) मात्रा गणना की जायेगी। शब्द 'दीनबन्धु' में गुरु लघु गुरु लघु (s।s।) मात्रा की गणना की जायेगी।

(xv) सम – इस शब्द में 'स' में 'अ' सम्मिलित है और 'म' में 'अ' सम्मिलित है। अतः 'अ' हृस्व स्वर है अतः इसे लघु (।) गिना जायेगा। इस तरह 'सम' शब्द में लघु लघु (। ।) मात्रा की गणना की जायेगी।

(xvi) होय – इस शब्द में 'ह' में 'ओ' की मात्रा लगी है और 'ओ' दीर्घ स्वर है इसे गुरु (s) गिना जायेगा। 'य' में 'अ' सम्मिलित है और 'अ' हृस्व स्वर है अतः इसे लघु (।) गिना जायेगा। इस तरह 'होय' शब्द में गुरु लघु (s ।) मात्रा की गणना की जायेगी।

हिन्दी व्याकरण के इन 👇 प्रकरणों को भी पढ़िए।।
1. लिपियों की जानकारी
2. शब्द क्या है
3. लोकोक्तियाँ और मुहावरे
4. रस के प्रकार और इसके अंग
5. छंद के प्रकार– मात्रिक छंद, वर्णिक छंद
6. विराम चिह्न और उनके उपयोग
7. अलंकार और इसके प्रकार

महत्वपूर्ण नियम –

1. छंद में प्राय: संयुक्त अक्षर से पहले वर्ण को गुरु माना जाता है।
जैसे – दीनबन्धु में 'न्धु' संयुक्त वर्ण के पूर्व का वर्ण 'ब' गुरु (दीर्घ) माना जायेगा।
2. अनुस्वार से युक्त हस्व वर्ण गुरु माना जाता है।
जैसे – बसंत- । s ।
3. विसर्ग युक्त ह्रस्व वर्ण गुरु माना जाता है।
जैसे – नमः । s
4. किसी शब्द के प्रथम संयुक्ताक्षर में दीर्घ मात्रा हो तो वह गुरु माना जाएगा किन्तु यदि हस्व है तो लघु रहेगा।
जैसे – (i) क्लांत s ।
(ii) स्तर । ।
5. यदि संयुक्त वर्ण के पहले का वर्ण स्वयं गुरु हो उस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।
जैसे – मान्धाता शब्द में 'मा' गुरु (s) ही रहेगा। संयुक्त का कोई प्रभाव नहीं)
6. चन्द्र बिन्दुवाला अक्षर लघु मात्रा में आता है।
जैसे – हँस । ।

हिन्दी व्याकरण के इन 👇 प्रकरणों को भी पढ़िए।।
1. व्याकरण क्या है
2. वर्ण क्या हैं वर्णोंकी संख्या
3. वर्ण और अक्षर में अन्तर
4. स्वर के प्रकार
5. व्यंजनों के प्रकार-अयोगवाह एवं द्विगुण व्यंजन
6. व्यंजनों का वर्गीकरण
7. अंग्रेजी वर्णमाला की सूक्ष्म जानकारी

आशा है, उपरोक्त जानकारी परीक्षार्थियों / विद्यार्थियों के लिए ज्ञानवर्धक एवं परीक्षापयोगी होगी। अधिक जानकारी के लिए नीचे दिए गए वीडियो को देखें।
धन्यवाद।
R F Temre
rfcompetition.com



I hope the above information will be useful and important.
(आशा है, उपरोक्त जानकारी उपयोगी एवं महत्वपूर्ण होगी।)
Thank you.
R F Temre
rfcompetiton.com

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(संबंधित जानकारी के लिए नीचे दिये गए विडियो को देखें।)
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