दो पृथक शब्दों को जोड़ने वाले चिह्न (-) को योजक चिह्न कहते हैं।
नीचे उदाहरण देखिए–
(अ) साहित्य मीमांसकों ने इसी दृष्टि से युद्ध-वीर, दान-वीर, दया-वीर, इत्यादि भेद किए हैं।
(आ) उससे मिलने के लिए दौड़ पड़ेंगे और उसके ठहरने आदि के प्रबंध में प्रसन्न-मुख, इधर-उधर, आते-जाते दिखाई देंगे।
(इ) सब कामों में साहस अपेक्षित नहीं होता, पर थोड़ा-बहुत, आराम-विश्राम आदि का प्रयास करना पड़ता है और दस-पाँच क़दम चलना ही पड़ता है।
उपर्युक्त रेखांकित शब्दों के मध्य में (-) चिह्न का प्रयोग किया गया है।
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इसे सामासिक या विभाजक चिह्न भी कहते हैं।
यदि योजक (सामासिक या विभाजक) चिह्न का ठीक - ठीक ध्यान न रखा जाए तो अर्थ और उच्चारण से संबद्ध अनेक प्रकार की त्रुटियाँ हो सकती हैं।
जैसे- भू-तत्व का अर्थ है भूमि से संबंधित तत्व यदि भूतत्व (बिना योजक चिह्न) लिखा जाए तो भूत (भूत + त्व = भूतत्व) शब्द का भाव वाचक संज्ञा रूप बन जाएगा।
अत: योजक चिह्न (-) का प्रयोग सावधानी से करना आवश्यक है।
योजक चिह्न का प्रयोग निम्नलिखित स्थितियों में होता है–
1. तत्पुरुष तथा द्वंद्व समास के दोनों पदों के मध्य योजक चिह्न का प्रयोग होता है।
जैसे- गीत-संगीत, माता-पिता, लाभ-हानि।
2. मध्य के अर्थ में योजक चिह्न का प्रयोग होता है।
जैसे– कृष्ण-सुदामा-चरित, रावण-अंगद-संवाद।
3. शब्दों के द्वित्व रूपों में योजक चिह्न का प्रयोग होता है।
जैसे– साथ-साथ, कभी-कभी।
4. तुलना सूचक शब्दों के बीच योजक चिह्न का प्रयोग होता है।
जैसे– बहुत-सा, राम-सा भाई।
5. विभिन्न शब्द युग्मों में योजक चिह्न का प्रयोग होता है।
जैसे– थोड़ी-बहुत, भीड़-भाड़।
6. संख्याओं को शब्दों में लिखते समय योजक चिह्न का प्रयोग होता है।
जैसे– दस-पाँच, तीन-चौथाई।
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आशा है, उपरोक्त जानकारी परीक्षार्थियों / विद्यार्थियों के लिए ज्ञानवर्धक एवं परीक्षापयोगी होगी।
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