आज से कुछ दशक पूर्व तक लघुकथा विधा स्थापित नहीं थी, पर अब यह विधा न उपेक्षित है और न ही अनजानी। आधुनिक कहानियों के संदर्भ में 'लघुकथा' का अपना स्वतंत्र महत्व एवं अस्तित्व है। लघुकथाएँ बहुत छोटी कथाएँ होती हैं, किन्तु इनकी संकल्पना सार्थक और रोचक होती है। ये हिन्दी की प्रमुख गद्य विधा है। हिन्दी की प्रमुख विधाओं (उपन्यास, कहानी, नाटक, एकांकी आदि) की मूल कथा के अन्दर गौण कथाएँ होती हैं। ये कथाएँ छोटी और शिक्षा देने वाली होती हैं। इन्हें भी लघुकथा कहा जा सकता है। लघुकथा हिन्दी की प्रमुख गद्य विधाओं से स्वतंत्र भी होती है।
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लघुकथाएँ वस्तुतः दृष्टान्त के रूप में विकसित हुई हैं। ऐसे दृष्टान्त मुख्यतया नैतिक और धार्मिक क्षेत्रों से प्राप्त हुए हैं। इस प्रकार नैतिक दृष्टान्तों के स्तर से नैतिक लघुकथाएँ सर्वत्र मिलती हैं। लघुकथा अपने आप में एक स्वतंत्र और सशक्त विधा है। इसकी शक्ति के पीछे सामाजिक परिवर्तन की पूरी प्रक्रिया है। लघुकथाओं में व्यंग्यों का पुट पाया जाता है। रचना की दृष्टि से लघुकथाओं में भावनाओं का उतना महत्व नहीं होता, जितना कि सत्य, विचार और सारांश का महत्व होता है।
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हरिशंकर परसाई हिन्दी के प्रमुख लघुकथाकार हैं। इनके अतिरिक्त अन्य प्रमुख लघुकथाकार एवं उनकी रचनाएँ निम्नलिखित हैं–
1. श्री शिवपूजन सहाय– एक अद्भुत कवि (1924 ई.)
2. कन्हैया लाल मिश्र 'प्रभाकर'– सुदर्शन, रावी
3. प्रेमचन्द
4. अज्ञेय
5. जैनेन्द्र
6. जयशंकर प्रसाद।
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I hope the above information will be useful and important.
(आशा है, उपरोक्त जानकारी उपयोगी एवं महत्वपूर्ण होगी।)
Thank you.
R F Temre
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