शब्द सम्हारे बोलिये, शब्द के हाथ न पाँव।
एक शब्द औषधि करे, एक शब्द करे घाव।
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देखो मालिन, मुझे न तोड़ो– शिवमंगल सिंह 'सुमन'
प्रस्तुत पद्यांश 'अमृतवाणी' नामक शीर्षक से लिया गया है। इसकी रचना कबीरदास ने की है।
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जो जल बाढ़ै नाव में– कबीरदास
प्रस्तुत पद्यांश में कबीरदास जी ने मनुष्य को उसकी भाषा पर संयम रखने की सलाह दी है।
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जो पूर्व में हमको अशिक्षित या असभ्य बता रहे– मैथिलीशरण गुप्त
सम्हारे- सँभालकर, औषधि- दवा, घाव- आघात।
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आए हौ सिखावन कौं जोग मथुरा तैं तोपै– जगन्नाथ दास 'रत्नाकर'
कबीरदास जी कहते हैं कि मनुष्य को सोच समझकर बोलना चाहिए। शब्द के हाथ पैर नहीं होते, किंतु उस शब्द का उसे सुनने वाले व्यक्ति पर गहरा प्रभाव पड़ता है। मधुर वाणी में बोला गया अच्छा शब्द, सुनने वाले के लिए औषधि अर्थात् दवा का कार्य करता है। इसके विपरीत कटु वाणी में बोला गया कटु शब्द, सुनने वाले को आघात पहुँचाता है। अतः हमें सोच समझकर ही बातें करना चाहिए।
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कबीर कुसंग न कीजिये– कबीरदास
प्रस्तुत पद से संबंधित महत्वपूर्ण तथ्य निम्नलिखित हैं–
1. प्रस्तुत पद में सरल, सुबोध और व्यावहारिक भाषा का प्रयोग किया गया है।
2. यह पद दोहा छंद का अनूठा उदाहरण है।
3. इस पद में बताया गया है, कि जहाँ जिस प्रकार के शब्द की आवश्यकता होती है, वहाँ उसी प्रकार के शब्द का प्रयोग करना चाहिए।
4. जीवन सत्य को उजागर किया गया है।
5. मनुष्य को अपनी वाणी पर नियंत्रण रखने की सलाह दी गयी है।
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हिंदी पद्य साहित्य का इतिहास– आधुनिक काल
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धन्यवाद।
R F Temre
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(आशा है, उपरोक्त जानकारी उपयोगी एवं महत्वपूर्ण होगी।)
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