कबीर संगति साधु की, जो करि जाने कोय।
सकल बिरछ चन्दन भये, बाँस न चन्दन होय।
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भेजे मनभावन के उद्धव के आवन की– जगन्नाथ दास 'रत्नाकर'
प्रस्तुत पद्यांश 'अमृतवाणी' नामक शीर्षक से लिया गया है। इसकी रचना 'कबीरदास' ने की है।
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सखी री लाज बैरन भई– मीराबाई
प्रस्तुत पद्यांश में कबीर ने संतों की संगति करने की सलाह दी है।
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बीती विभावरी जाग री― जयशंकर प्रसाद
साधु- संत या सज्जन, कोय- कोई, सकल- सभी, बिरछ- वृक्ष।
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मैया मैं नाहीं दधि खायो― सूरदास
सत्संगति का महत्व बताते हुए कबीरदास जी कहते हैं, कि यदि मनुष्य को संगति करना है तो उसे सज्जनों की संगति करना चाहिए। वे कहते हैं कि अच्छे साथ के कारण प्रकृति के सभी वृक्ष सुगंधित चंदन हो जाते हैं, जबकि सत्संगति के अभाव के कारण बाँस चंदन नहीं हो पाता। अतः हमें अच्छे लोगों की संगति करना चाहिए।
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बानी जगरानी की उदारता बखानी जाइ― केशवदास
प्रस्तुत पद से संबंधित महत्वपूर्ण तथ्य निम्नलिखित हैं–
1. जीवन में सत्संगति के महत्व को बताया गया है।
2. अनुप्रास अलंकार का प्रयोग किया गया है।
3. मिश्रित भाषा का प्रयोग किया गया है।
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मैया, मोहिं दाऊ बहुत खिझायो― सूरदास
आशा है, उपरोक्त जानकारी आपके लिए उपयोगी होगी।
धन्यवाद।
R F Temre
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(आशा है, उपरोक्त जानकारी उपयोगी एवं महत्वपूर्ण होगी।)
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R F Temre
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